तुम्हारा सीना कई बार छलनी हुआ है
जब बाँटा है तुम्हें कई हिस्सों में
तुम्हारी ही संतानों ने
सरहद खींचे, मेड बनाए
आँगन में दीवार उठाए
मिट्टी कोडे, मलबे फेंके
तुमने कितने मंजर देखे
फिर भी देती ही रही सबको
ममता की गठरी से अपने
कुछ न कुछ जो आँचल में छुपाए
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