बहुत सबेरे जग जाता
है यह घर का मुखिया
फिर हमें जगाता है
खिडकी से रोशनी भेज कर
बेचैनी पैदा कर देता
है हमें काम पर जाने के लिए
निठल्ला बैठने नहीं
देता
धूप में तपाता है
कभी चाँदनी की बारिश
में नहलाता है
तो सुलाता है कभी
ठण्ढी बयार के झोंके में
बादलों की रजाई
ओढाता है
कभी सपने दिखाता है
जब तारों के जुगनू
टिमटिमाते हैं उसकी आँखों में
हमें किस बात की चिंता है
सर पर जो इसका साया है
किसकी मजाल जो दिखाए आँखें
अभी ज़िन्दा है घर का
यह मुखिया
!
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