Saturday, July 26, 2014

घर का मुखिया


बहुत सबेरे जग जाता है यह घर का मुखिया
फिर हमें जगाता है खिडकी से रोशनी भेज कर

बेचैनी पैदा कर देता है हमें काम पर जाने के लिए
निठल्ला बैठने नहीं देता
धूप में तपाता है
कभी चाँदनी की बारिश में नहलाता है
तो सुलाता है कभी ठण्ढी बयार के झोंके में
बादलों की रजाई ओढाता है
कभी सपने दिखाता है
जब तारों के जुगनू टिमटिमाते हैं उसकी आँखों में

हमें किस बात की चिंता है
सर पर जो इसका साया है
किसकी मजाल जो दिखाए आँखें
अभी ज़िन्दा है घर का यह मुखिया

!

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