वो जो सामने ही फोर लेन का फ्लाईओवर है
लहराता हुआ
ज़मीन से उठकर घूमता हुआ,
बल खाता हुआ
आडा-तिरछा होता हुआ
बढ चला है आसमान की ओर
और गुम हुआ जाता है बादलों में
जैसे कैंची काटते चलाते हैं साइकिल
आजकल के छोकरे
और देखते-देखते हो जाते हैं आँखों से ओझल
इन फ्लाईओवरों पर दौडती हैं गाडियाँ और
लॉरियाँ
जिसे देखते हैं लोग दाँतों तले दबाकर
ऊँगलियाँ
जिन्हें मंजिल तक ले जाती हैं ख़ुद सडकें
हीं
इन्हीं फ्लाईओवरों की बगल से जाता है एक
रास्ता
जो तब्दील हो जाता है पगडंडी में अचानक ही
और गुम हो जाता है खेतों में
झुग्गी-झोंपडियों में
और गली की भूल-भुलैयों में
जहाँ बसता है मेरा गाँव
सदियों से जहाँ है जीवन बिल्कुल सपाट
जहाँ खोए हुए रास्तों में ढूँढते हैं हम
अपनी मंजिल ख़ुद ही...!!
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