Tuesday, July 22, 2014

हवा की तेजी




हवा की तेजी तो देखो
कैसे उडाए हुई है बादलों को


सबेरे देखा तो आसमान ने जमा कर रखे थे
अच्छा-खासा बादलों के घने टुकडे
छिप गया था आसमान काले घने बादलों में



रात भर चोरी-छिपे जमा करता रहा था वह बादलों को
नेक काम करना चाहता था
पसीजा था उसका दिल
सुन कर किसानों की गुहार
जब दिन भर की कडी धूप में रोपनी कर
लौट रहे थे किसान अपनी-अपनी झोंपडी में कल शाम  

दोपहर तक बरसाना चाहता था
बादलों से निकाल कर बारिश के मोटे-मोटे दाने खेतों में
दानी सेठ की तरह
पर न जाने कहाँ से भनक लग गई हवा को
भगाए लिए जा रही है बादलों को कहीं दूर

खुन्दक निकाल रही है आसमान से


पिछले माह ही जब कोई काम नहीं लिया था आसमान ने उससे
बिठाए रखा था बिन काम के
और पगार भी नहीं दी थी
जेठ की भीषण गर्मी में कैसे कसमसाए थे लोग
सडकों पर टहलते काटे थे लोगों ने अपनी रातें
छटपटा कर रह गई थी वह
बहना चाहती थी
मन्द मन्द
रातों में..
के दिन भर तपने के बाद कम से कम ले सकें लोग
रातों में चैन की नींद
पर दिल नहीं पसीजा था आसमान का
सख़्त हिदायत के बीच पहरे भी बिठा रखे थे उसने


मन मसोस कर उसी दिन ठान ली थी उसने 
सबक सिखाने की आसमान को 
मुखबिर फैला दिए उसने आसमान के चप्पा-चप्पा पर
फुसला ही लिया उसने बादलों को दे कर झाँसा
उडाए लिए जा रही है अपने संग
मुँह ताक रहा है आसमान
देख रहा यूँ खाली होते अपनी झोली  
बेबस...
लाचार...!!


22.07.2014 

सबेरे से तेज हवा चलती रही, बादल आसमान में उडते रहे... काले-काले घने बादल भी दिखे...कई बार पूरा आसमान ढँक गया बादलों से... पूरी सम्भावना थी कि आज बारिश हो ही जाएगी पर नहीं... चकमा दे गया बादल... नहीं ही बरसा. मुझे लगता है इसमें बादल का कोई कुसूर नहीं... इसके पीछे हवा का ही हाथ है.... 

पर हवा को जैसे पता चला, उसके सर दोष मढा जा रहा है तो उसने कहा, 

 हवा
 
फिर लोगों ने लगाए इलजाम मुझपर
फिर आया मेरा नाम उनकी ज़ुबाँ पर
फिर उठ रही ऊँगलियाँ मेरी तरफ
बादल जो नहीं बरसा ज़मीं पर
कह रहे हैं सब
ये उल्टी हवा है...ये कैसी हवा है..!!


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