Friday, July 18, 2014

सूरज की माँ




सूरज का लाल गोला यूँ आसमान में
उछल कर आया है कई दिनों की बदली के बाद
जैसे समन्दर ने उसकी आँखों पर पानी के छींटें मारे हों
और वह हडबडा कर उठ बैठा हो.....

दिन भर आसमान लिए फिरता है उसे तो
रातों में समन्दर सुला लेता है उसको अपनी गोदी में

बहलाए रहते हैं दोनों बारी-बारी
छिपा कर कभी बादलों में या पानी में  
खेलते हैं उसके साथ झाँ..... का खेल


न जाने कब याद आ जाए उसे अपनी माँ का नाम
और पुकार बैठे
अदिति....तुम कहाँ हो...!! 




17.07.2014

No comments: