सूरज का लाल गोला यूँ आसमान में
उछल कर आया है कई दिनों की बदली के बाद
जैसे समन्दर ने उसकी आँखों पर पानी के
छींटें मारे हों
और वह हडबडा कर उठ बैठा हो.....
दिन भर आसमान लिए फिरता है उसे तो
रातों में समन्दर सुला लेता है उसको अपनी
गोदी में
बहलाए रहते हैं दोनों बारी-बारी
छिपा कर कभी बादलों में या पानी में
खेलते हैं उसके साथ “झाँ.....” का खेल
न जाने कब याद आ जाए उसे अपनी माँ का नाम
और पुकार बैठे
अदिति....तुम कहाँ हो...!!
17.07.2014
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