Monday, July 21, 2014

धन्नासेठ आसमान




यह आसमान भी एक पूरा सेठ बन गया है
भरता जा रहा है अपना गोदाम बादलों से

हवा को भी जैसे लत लग गई हो जमाखोरी की
बन कर आसमान का मुनीम  
कर रही इकट्ठा बादलों को
हर दिशा से चुन चुन कर
तेजी से
और भरती जा रही तिजोरी अपने सेठ की  

कोई अक्ल दे इस आसमान को
इस तरह जमाखोरी अच्छी बात नहीं
कहीं यूँ ही रक्खे-रक्खे ज़ाया न हो जाए बादलों की बोरियाँ .


घुन लगने के पहले
खोल दे अपने गोदाम का दरवाज़ा यह धन्नासेठ आसमान
छींट दे बादलों की बोरियों से बारिश की बूँदों के दाने
इस सूखी धरती के होंठों पर
के लहलहा उठे प्यास से तडपती 
धरती की फसल
और आ जाए मुस्कान धूप से मुरझाए
किसानों के चेहरे पर .....!!

20.7.2014

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