रात भर जागता है यह
बूढा आसमान
रोशनी आती है उसके
कमरे से तारों की
सबेरे सबेरे जगा
देता है हमें
छींटे जब देता है मुँह
पर ओस के
फिर खडे हो जाते हैं
सब बूढे बाबा को घेर
निकालता है यह अपनी
झोली से कुछ न कुछ
बाँटता है फिर बराबर बराबर सभी में
धूप, हवा, पानी
चाँद और चाँदनी
बादल, बिजली, धनक
और फूलों की महक
इस बूढे आसमान ने
वसीयत कर रखी है
के मिले सभी को उसके
हिस्से का
अपना अपना आसमान...!!
अपना अपना आसमान...!!
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