Saturday, July 12, 2014

तकिया



1.

किए पर सर रखते ही नींद आ जाती है मुझे
फिर ख़्वाब आते हैं मेरी नींदों में
प्रेम भरे आलिंगन के
खुशबू सी घुल जाती है मेरी साँसों में...


पर कल लाख जतन किए
नींद उचटती रही पूरी रात
कभी तकिए में सर छुपाया 
तो कभी चिपकाए रहा सीने से देर तलक
कभी बाँहों में समेटे रहा तो
पाँवों में भी दाब कर रखा कुछ देर
न कोई ख़्वाब ही सुला सका मुझे
और न ही कोई ख़ुशबू सी घुली ज़ेहन में


देखा था मॉर्निंग वाक पर जाते हुए
फुटपाथ पर सोए हुए मजदूरों को
ईंटों के तकिए  
और खुली जमीन के बिछौने पर...

ईंटों पर सोने से सपने आते हैं ईंटों के
फिर वे उठा पाते हैं और भी ज्य़ादा ईंटें
सामने ही बनते अपार्टमेंट के लिए
जिसमें सोयेंगे लोग नर्म बिछावन पर
रख कर सर के नीचे मुलायम तकिया
जिसपर धागों की कढाई से लिखा होगा ‘स्वीट ड्रीम’,
फिर देखेंगे लोग ख़्वाब
प्रेम के...आलिंगन के...श्रृंगार के....!!    

2.


भी सर छुपा कर रोती है मुझमें
तो कभी सीने से लगाए झूम कर गाती है
जब होती है तन्हा अपने कमरे में

कभी बाँहों में समेटती है मुझे  
गोदी में रख कर ख्वाब बुनती है कभी
रूठने मनाने के खेल में 
मुक्के भी बरसाती है मुझपर अक्सर 
काले घने मेघ के बादल सा बिखरा देती है मुझ पर
कभी अपनी ज़ुल्फें खोलकर
घोल देती है खुशबू मेरे दिलो-दिमाग पर
जब कभी भीगे बालों से टपका देती है पानी मुझपर

पर हर तकिए की किस्मत में नहीं होती
दुल्हन की ये नजाकत
सेठ जी जब पाँवों में  
दबोचते हैं मुझको
तो निकल जाती हैं साँसें मेरी...!!

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