उम्र हो चली है
अब अक्सर बीच रात बेवजह ही खुल जाती है
नींद मेरी
छत पर निकल आता हूँ
यूँ ही कुछ देर चाँदनी रात में टहलने लगता
हूँ
पूरा मोहल्ला गहरी नींद में खर्राटे लिए मिलता है
मद्धम रोशनी झाँकती मिलती है घरों के
जंगलों से
सडकों पर सरियों के लम्बे-लम्बे निशान
मिलते हैं उन रोशनियों में
चाँदनी झाँकती है लोगों के घरों में
रोशनदानों से
सामने वाले घर से चीखने चिल्लाने की
आवाजें आती हैं अक्सर
उम्र हो चली है,
दिखाई नहीं देता
शायद मिश्रा के घर से
ऐसे ही देर से आता है मिश्रा
न जाने कितने पिछले हिसाब हैं
जो देर रात ही ‘सेटल’ करते हैं मियाँ-बीवी
गली के कुत्ते भी चौंक उठते हैं उनकी आवाज
से
अचानक ही आपस में भिड जाते हैं
देर तक गुर्राते रहते हैं एक दूसरे पर
फिर एक सन्नाटा सा पसर जाता है
सबेरे मिलेगा मिश्रा दूध की बूथ पर
अपनी सूजी आँखें लिए हुए
और एक फीकी मुस्कान के साथ...!!