Saturday, August 27, 2011

दिन की शुरुआत

सबेरे उठते ही मत पढ लेना अखबार
तुम्हारा सारा दिन हो जाएगा बेकार
पहले ही पृष्ठ पर छपी
हत्या, बलात्कार, जमाखोरी और भ्रष्टाचार की खबरों से
जग जाएगा तुम्हारे अन्दर का जानवर भी
फिर नाहक ही
बेवजह
बिना बात के
मॉं पर चीखोगे
पत्नी पर चिल्लाओगे
बच्चों पर झल्लाओगे
खाने की थाली ठुकराओगे

अपने ही मोहल्ले में हुई
किसी घर में
दहेज के लिए
किसी मासूम की
हत्या की खबर पढोगे
तो दीवारों से
सर फोडोगे

शहर के किसी खास व्यक्ति के
देह व्यापार में लिप्तता की खबर पढोगे
तो चौंकोगे
भ्रम टूटने का दंश झेलोगे

सिनेमा वाले पृष्ठ में
तारिकाओं की अधनंगी तस्वीर देखोगे
तो शरमाओगे,
झेंपोगे,
बच्चों से मुँह चुराओगे
उनके उन्मुक्त, स्वच्छन्द जीवन शैली की कहानियाँ पढोगे
तो अपने को वर्जनाओं में जकडे हुए पाओगे
मुक्ति की छटपटाहट में
भटक जाओगे
घर तोडोगे

करमू के अदम्य साहस की खबर
जिसने कोशी की बाढ की उफनती लीलती लहरों से
अकेले ही
बारह लोगों की जान बचाई थी,
इश्तहारों के बीच
कहीं दम तोडती देखोगे
तो दुखी होगे
गुस्साओगे

मास्टर साहब के सपनों की कहानी
जिन्होंने पूरे गाँव को साक्षर बनाने की ठानी,
अखबार में
ढूँढते रह जाओगे

और....तुम्हारे गाँव के रहमत चाचा के
संघर्षों की गाथा,
उनकी बूढी आँखों में
भविष्य की चिंता की कथा
उनकी पथराई जागती आँखों में कटी
अनगिनत रातों की व्यथा
जिनकी इकलौती औलाद ने
कारगिल युद्ध में शहादत पाई थी,
अखबार में ढूँढने की सोचना भी मत
पछताओगे


मेरी मानो
सबेरे उठते ही
कुछ पल के लिए
आँखें बन्द कर लेना और सोचना
किसी बच्चे की खिलखिलाहट को
किसी दोस्त के उन्मुक्त सानिध्य को
किसी बूढे-बूढी के पोपले मुँह को
उनके चेहरे की अनगिनत झुर्रियों को
उनके दूध से सफेद रुई जैसे रेशमी बालों को
अपनी माँ के दिन-रात की मेहनत को
उनके पाँव की फटी बेवाई को
अपने दिवंगत बुज़ुर्गों को
उनके स्नेह सिक्त वचनों को
उनके  पसीनों की खुशबू को
उनके वापस घर आने पर
फैली घर की रौनक को
अपने सर पर उनके स्पर्श को
और उनकी स्निग्ध हँसी को

इतना करने के बाद
हो सके तो मुस्कुरा देना और
धीरे से आँखें खोल देना
यकीन मानो,
दिन ही नहीं
तुम्हारी दुनिया भी संवर जाएगी



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