अभी कल की ही तो है बात
खिल उठे थे कई फूल
एक साथ
अचानक
दिल के सहरा में....
एक बादल सा उठा
घना हुआ
और घना
तबसे अब तक लगातार बरसता
तर कर गया
दिल का कोना कोना
क्या आसां है किसी के मन को यूँ छू लेना..
कल की ही है बात
जब हौले से
सात पर्दों और पाँच दीवारों
में छिपे मन को
उसने ढूँढ निकाला था..,
और इतने चुपके से
डाला था अपना डेरा
कि बंजर धरती का सीना चीर
फूटा था कोई बीज
फिर निकली पत्तियाँ
और बढती डालियाँ
फिर फूल ही फूल
हैरत कर गया मुझे
कि फिर जहाँ भी जाता हूँ
ये खुशबू साथ-साथ चलती है
सदियों की सूखी धरती की
बुझती नहीं प्यास
वह लगाए बैठी है आस
कि बादल यूँ ही बरसता रहे
और खिलते रहें फूल
बिखरती रहे सुगंध
हर एक दिशाओं में
बुनता रहूँ मैं यूँ ही ख्वाब
जिसमें हो केवल सीधी बुनाई
एक भी उलटी नहीं
ऊँगलियों की सलाई से
डालता रहूँ मैं फंदे
बिना गाँठ के
टाँकता रहूँ सितारे
और रोशनी की झालर
झाँके इसी झालर से
चाँद और सूरज
जगमगा उठे सारा जग
कि खोल डाली हैं खिडकियाँ भी उसने
झूठ है कि आसाँ नहीं मन को छूना
गर पास हो सादगी उसके जैसी
और मालूम हो रास्ता मन का...!!
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