Monday, August 1, 2011

जेल


जेल

उसे काल कोठरी कहा जाता था
वहाँ आजादी के दीवानों के
हाथ-पाँवों में होती थीं बेडियाँ  
वे जमीन पर सोते
मच्छरों और बिच्छुओं के बीच
अँधेरी, तंग कोठरी में
सबेरे के सूरज की प्रतीक्षा करते
बोरियों के सिले वस्त्र पहनते
कांजी पीते
कोडे खाते
फिर भी आजादी के गीत गाते
दीवारों पर ओजस्वी भाषण लिख देते
गीता रच देतेç
और एक दिन हँसते-हँसते
फाँसी पर झूल जाते
सेलुलर जेल की उस काल कोठरी को
हो सके तो देख लेना कभी एक बार
सच मानो,
होगा रोमांच
शरीर में उस पुण्य भूमि के स्पर्श से
सिहर उठोगे तुम..

और आज,
अरबों..खरबों का गबन करने वाले
बदकिस्मती से यदि पकडे जाते
और
रखे जाते जिस जेल में
वातानुकूलित कमरे नहीं होने की
होती है उन्हें शिकायत
घुट न जाए कहीं बंद कमरे में उनका दम
इसलिए सबेरे शाम
मिल जाती है टहलने की भी इजाजत 

ये अखबार पढते
किताबें मँगाते
टीवी भी देखते
चाय पीते, कॉफी पीते,
घर से आया भोजन करते
जेल से बाहर निकलने के लिए
महंगे वकील रखते
ये घूस लेने में पकडे जाते
और घूस देकर छूट जातेç

इस जेल को नेताओं, अफसरों और
सुविधा भोगियों का
कहा जाता है आराम स्थल
इसे कभी मत देखना
यकीन मानो
जिसका नाम सुनने पर ही होती है घुटन
उसे देखने पर आएगी मितली 

अक्सर सोचता हूँ मैंé
मेरे गुनाहों के लिए मुझे किस जेल में रखोगेç

मैं भी तो हूँ एक मुजरिम
मुझे भी मिलनी चाहिए सजा
मेरे संगीन अपराध के लिए
अपराध जो मैंने किया है
तुलना करने का

तीर्थों के तीर्थ सेलुलर जेल की
तिहाड, बेउर या अन्य जेलों सेç
आजादी के दीवानों की
आज के नेताओं से,
अफसरों और सुविधा-भोगियों सेç
इतना बडा गुनाह...?

इस तुलना की कडी से कडी सजा मुझे दोç
फाँसी से भी कडी
हो सके तो मुझे जिन्दा छोड दो
ताकि मुझे मरने का
हो हर पल अहसास
तिल तिल मरते रहने का अहसास
पल पल...हर पल

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