Saturday, August 27, 2011

बाल श्रम

1.
वह बच्चा ही तो था
जो अफसरों की मेज़ों पर
रखता था प्लेटेंþ
प्लेटें जिनमें सजे होते थे
पेस्ट्री, काजू, पिस्ते

अफसर जो हर माह इकट्ठे होते
उस वातानुकूलित कॉंन्फरेंस हॉल में
बहस करते,
दिमाग भिडातेç,
बीच-बीच में काजू खाते
हल ढूढने की कोशिश करते
कि कैसे देश से बाल-श्रम दूर हो

समितियाँ बनाते
दौरे करते
आँकडे रखते
अगली तारीख तय करते
फिर इकट्ठा होते
उसी कॉंन्फरेंस हॉल में

फिर आता वही बच्चा
सजाता उनके सामने प्लेटें
रखता पेस्ट्री, काजू, पिस्तेç

मीटिंग के बाद प्लेटों को
निर्विकार दृस्टि से देखता
अफसरों के छोडे काजू-पिस्तों को समेटता
तभी आ जाता झगरू सिंह
उठा ले जाता सारे काजू-पिस्ते
अपनी घरवाली के लिए
कितनी हैरत कि उस बच्चे ने
आजतक काजू नहीं चखे
न ही उसने खाए कभी पिस्ते
उसकी जीभ से लार भी नहीं टपकती
क्योंकि उसे काजू-पिस्ते नहीं
चाहिए दो जून की रोटी 


2.

वह बच्चा ही तो था
जो चुनता मलबों से टीन, शीशी, काग़ज
और प्लास्टिक की बोतलेंÞ
भरता पीठ पर लादे एक बोरी में

बोरी जो उसकी दुनिया होती
जिसमें भरता वह अपने सपने
रात मेंçÞ बन जाती यह चादर
ठंढ में वह उसके अन्दर होता

मलबों की वे दुर्लभ चीजें
उसके लिए कितनी कीमती होतींÞ
पर वह भी है कितना कीमती
काश हमारी समझ ये होती

हम तो उसे समझते
मलबे का ही एक वो हिस्सा
कहलाता कल की जो धरोहर
बन गया आज ही एक किस्सा

कचरे में खोया यह हीरा
न जाने हम कब चुन पायेंगे
काश हमारे पास भी होती
सपनों की वैसी ही इक बोरी
और उस बच्चे जैसी दृष्टिþ

3

वह बिल्कुल बच्चा ही था
जो उठ जाता
सूरज के उगने के पहले ही
फिरता ट्रेनों में
लिए अपने वजन से भी ज्यादा भारी
झालमूरी की टोकरी
जो उसका बापू रोज़ सवेरे
लाद देता
उसकी गर्दन में

उसे मालूम होता
डालना कितने ग्राम में ý
कितनी मिर्ची,
कितना तेल,
प्याज और नमक  ý
पहचानता वह डेली पैसेंजर के अपने ग्राहक भी
रामबाबू को  बिना पूछे ही पाँच रुपये की थमाता
अगला स्टेशन आने पर
ट्रेन के रुकने के पहले ही
उतर जाता
फिर डाउन ट्रेन में हीरालाल को
दस रुपए की झालमूरी देता

रात वह और उसका बापू
रखते दिनभर की कमाई
उसकी माँ की खुरदरी हथेलियों पर
फिर मिलती दोनों को
रोटियाँ और एक टुकडा प्याज
सोते दोनों फिर आँखों में लिए
मीठे सपने
कि कल की बिक्री होगी
आज से भी अधिक
और मिलेगी एक सब्जी भी
रोटी और प्याज पर

4.

वह बच्चा ही तो था
जो रात के ग्यारह बजे
रेलवे प्लैटफॉर्म पर
चिल्ला-चिल्ला कर
बेचता अखबार
कहता,
पढिए बाइस तारीख का पेपर इक्कीस को ही
कल का अखबार आज ही

हमारी कल की तस्वीर
आज ही बताने वाला
खुद बीते हुए कल की तस्वीर बना
बैठा है स्टेशन की चकाचौंध में
आते-जाते लोगों की रेलम-पेल में
पडा है खुद
एक पुराने अखबार की तरह
रेलवे ओवरब्रिज की सीढियों पर
ट्रेनों की पायदान पर
या दोनों टॉयलेट के बीच

इक्कीस का बाइस होने से पहले
इन बच्चों की आज
सुधर जाए
तो कितना अच्छा

5.


हाँ, वह बच्चा ही था
जिसके खुद के पाँवों ने
नहीं देखे कभी जूतेç
पर करता ट्रेनों में जूते पॉलिश सबके
निहारतीं नजरें उसकी
हमेशा लोगों के पैर
ना काहू से दोस्ती
ना काहू से बैर

जूते वाले पैर देखते ही
खडा हो जाता सम्मुख उनके
करता चमकाने का वादा
निकालता तरह-तरह के क्रीम
छोटी-मोटी शीशियों सेç
रगडता, चमकाता,
पाँवों में जूते पहनाता
फीते बाँधता
हाथ फैलाता
पाँच की जगह चार रुपए देख
घिघियाता
हाथ पसारता
चिरौरी करता
पाँव पकडता
गाली सुनता
थप्पड खाता
फिर चल पडता
दूसरे पाँवों की ओर
चमकाने जूते
और फिर खाने लप्पड-झप्पड
या कोई भद्दी सी गाली
माँ की
जिसे उसने सिर्फ एक बार देखा है
आसमान में
सितारों के बीच
और कहते सुना है,
जूते पॉलिश कर लेना पर नहीं माँगना भीख
जितना रगडो उतना चमके जीवन की यह सीख

दूसरों के जूते चमकाने वाले
इन बच्चों की किस्मत
न जाने कब चमकेगी


6.

वह बच्चा ही तो था
जो ट्रेन में
सवारियों के उतरने के पहले ही
कम्पार्टमेंट में
घुस आया था

जेबकतरा समझ
लोगों ने
कर डाली थी
उसकी पिटाईê

पर वह तो आया था
लेने लोगों के छोडे, अधपिए
पानी की बोतलें
ताकि पानी भर कर
शाम की ट्रेन में
बिसलेरी...बिसलेरी.. कह कर बेच सके

बिसलेरी उसके लिए पानी का अंग्रेजी है
पानी बोलने में उसे लगता है डर
न जाने कब लोग उसका
पानी ही न उतार देंÞ

7.

झगरू सिंह के आने के पहले,
रद्दी चुनने वाले के मलबे का हिस्सा बनने के पहले
झालमूरी वाले के भूखे  सोने के पहले
अखबार बेचने वाले का बीते हुए अखबार होने के पहले
जूते चमकाने वाले जीवन बदरंग होने से पहले
बिसलेरी वाले के पिटे जाने के पहले
इन बच्चों की आज सुधर जाए
तो कितना अच्छा.


    

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