Saturday, August 27, 2011

माँ


घर के अन्दर रहता कुत्ता
बाहर के कमरे में माँ
सोफे पर सोता है कुत्ता
चरमर खाट पर सोती माँ

मुर्ग-मुसल्लम बिस्किट खाता
बासी रोटी खाती माँ
मैकडोनाल्ड से बर्गर जब आता
भूखी ही सो जाती माँ

कुत्ते को गोदी में उठाते
झिडकी सुनती रहती माँ
सैर सपाटे करते हैं सब
घर की पहरेदारी को माँ

जन्मदिन भी इसका मनता
मौत की बाट निहारे माँ
कुत्ते के हैं ठाट निराले
कुत्ते से भी बदतर माँ

देर सबेरे जब सब उठते
चाय बनाकर हाजिर माँ
झाडू-पोंछा कपडे धोती
चूल्हा-चौका करती माँ

मेमसाहब को कैक्टस भाता
तुलसी पूजन करती माँ
क्लब पार्टियों में सब रहते
संध्या वंदन करती माँ

उसके पाँव बेवाई फटे हैँ
चेहरा झुर्रियों वाली माँ
बहुओं के फैशन के आगे
बदसूरत सी दिखती माँ

दीवारें हैं भाई उठाते
उनपर छत करती है माँ
लेकिन नित नए तानों से उनके
तिल-तिल मरती रहती माँ

भाइयों की यह बडी समस्या
किसके पास रहेगी माँ
पढे लिखों के जमघट में अब
मूरख बन कर रह गई माँ

कोई न सुनता उसकी बातें
कुछ कहने में डरती माँ
चुप रह कर ही वक्त गुजारे
गुमसुम बैठी रहती माँ

बरसों पुरानी कुछ चीजों में
क्या क्या ढूँढा करती माँ
बाबूजी की तस्वीरों से
बातें करती रहती माँ

कोख के जाए कभी तो चेते
ऐसा सोचा करती माँ
रामायण से उपमा देती
किस दुनिया में रहती माँ

घर घर देखा एक ही लेखा
हर घर में ऐसी एक माँ
जिनके चरण कभी देव थे बसते
अब कविता में मिलती माँ


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