छुट्टियाँ बिता कर लौट रहा
हूँ मैं
बदलना पडता है ट्रेन आसनसोल
स्टेशन पर
जिस ट्रेन से मुझे जाना है
वह देर रात आएगी सियालदह से
वेटिंग रूम में बैठा गिन
रहा हूँ आती-जाती ट्रेनों को
एक हुजूम उतरता है हर ट्रेन
से
चढ जाता है एक और उतना
ही
न ट्रेन खाली होती है
न प्लैटफॉर्म
सिलसिला रात भर चलेगा
हिसाब बराबर करने का
रात भर दौडेगी ट्रेनें अँधेरे
में
पहुँच जाएगी फिर अपनी-अपनी मंजिल
मुँह अँधेरे ही
सुबह की अलसायी नींद लेने
के लिए अंतिम पडाव पर
कि फिर चलना होगा एक लम्बी
दूरी
उसे भी और
मुझे भी
सूरज के सर चढते ही
...!!
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