Friday, March 13, 2015

अंतहीन यात्रा



छुट्टियाँ बिता कर लौट रहा हूँ मैं
बदलना पडता है ट्रेन आसनसोल स्टेशन पर
जिस ट्रेन से मुझे जाना है वह देर रात आएगी सियालदह से 

वेटिंग रूम में बैठा गिन रहा हूँ आती-जाती ट्रेनों को
एक हुजूम उतरता है हर ट्रेन से
चढ जाता है एक और उतना ही 
न ट्रेन खाली होती है 
न प्लैटफॉर्म

सिलसिला रात भर चलेगा 
हिसाब बराबर करने का   
रात भर दौडेगी ट्रेनें अँधेरे में
पहुँच जाएगी फिर अपनी-अपनी मंजिल मुँह अँधेरे ही
सुबह की अलसायी नींद लेने के लिए अंतिम पडाव पर
कि फिर चलना होगा एक लम्बी दूरी
उसे भी और
मुझे भी
सूरज के सर चढते ही ...!! 




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