Tuesday, March 17, 2015

जगजीत सिन्ह


तुम्हारी आवाज़ इक नज़्म की तरह   
रस घोलती है कानों में 
ठंढी हवा के झोंके से लगती है  
किसी झुलसती गर्मी में
तुम्हारी गज़लों की तान  
माएने इस तरह घुलते हैं रूह में गज़लों के
जैसे सोंधी खुशबू घुलती है फज़ाओं में धीरे धीरे
बारिश की पहली फुहार से
 
छन छन के टपकती तुम्हारी आवाज़ की बूँदों से 
कभी कभी ऐसा भी लगता है
जैसे तेज ताप से तपती देह पर
बर्फ की पट्टी रखी जा रही हो माथे पर
या कोई बीमार अच्छा महसूस करता है
जब छटपटाते बदन पर उभरे लाल-लाल चकत्ते पर उसके 
लगती हो चन्दन की लेप

अच्छा करने की तासीर रखती है
किसी बीमार को
तुम्हारी आवाज़
और तुम्हारी दिलकश ग़ज़लें ...!!    





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