ग़मों की स्याही उडल जाती है
किसी दावात से हर दिन
डुबो-डुबो के लिखता हूँ
कंडे की इक कलम से
हर रोज़ एक हर्फ़
अपनी ज़िन्दगी के कोरे काग़ज़
पर
सोचता हूँ बनेगा एक दिन
तिनका तिनका जुड कर उन
हर्फ़ों से कोई गीत
हर्फ़ जो बिखरे रहते हैं दिल
के पन्नों पर
माएने की तलाश में
पर मुकम्मल होने के पहले ही
सोख लेता है स्याही
मेरे दिल का ब्लॉटिंग पेपर
ये ग़मों की भीड कुछ दिन टिक
जाती
तो पूरा हो जाता
मेरा कोई गीत
बेवज़ह वरक़ भी दिल की किताब
का
उडता नहीं फज़ाओं में
बिखरे हर्फ़ लिए…!!
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