Sunday, May 26, 2024

पुल

 मोरबी में हुए पुल हादसे से जोड़ती हुई एक कविता


एक पुल बनाया था पिताजी ने

दो कुलों को जोड़ा था

त्याग के पाए थे

ममता के साए थे

मज़बूत और भरोसेमंद

एक दूसरे के लिए फ़िक्रमंद

विश्वास के लगे थे सरिए

मिलने जुलने के थे ज़रिए

और थे सद्भाव के गारे 

सह लेते थे दूरदराज़ के रिश्ते हमारे


जब हट गया उनका सर से साया

पुल पहली बार थरथराया 

आने जाने से होने लगा कम्पन

मिलने जुलने पर भी नहीं खिलता मन

रिक्त हो गया मन का एक कोना

अपने हिस्से रह गया बस रोना

हिले थे पुल के पाए

कौन किसका हिस्सा खाए


किसी ने नहीं सोचा इस पुल की मरम्मत हो

जो आगे आये उनमें कोई शराफत हो

जो समझे जाते रखवाले थे

उन्हीं के सबसे बड़े निवाले थे

उन्होंने ही लिया था जिम्मा संवारने का

फिर से रिश्ते की मधुरता निखारने का

पर लालच सच में बहुत बुरी बला है

जिसको पकड़ ले उसका दुर्दिन नहीं टला है


एक दिन उन्होंने लिया सारा माल गटक

पुल मरम्मती का काम बीच में ही गया अटक

यह देखकर जब हम सब उसपर दौड़े थे

पाए खिसक गए और हम भहरा कर गिरे थे


ऐसा ही कुछ मोरबी के पुल हादसे में भी हुआ

ठेका पाने के लिए बड़े व्यापारी ने खेला जुआ

जिसे मिला था पुल मरम्मती का जिम्मा

वह निकला कितना बड़ा निकम्मा

न जाने कितने लोग मरे थे

जब वे कमज़ोर पुल से गिरे थे

उनके घर पसरा मातम

कैसा उसने ढाया सितम

डेढ़ सौ मौतें मुद्दा है एक बहस का

पर सवाल यहां सबसे बड़ा इंसान की हवस का


#morbi #मोरबी #हादसा #yqdidi

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