हम मजदूर
कितने मजबूर
गांव से दूर
रहते नागपुर
कुछ कानपुर
या सहारनपुर
बनाते अट्टालिकाएं,
तंबू या बंबे में अपने बच्चे सुलाएं
फुटपाथ या हो सड़क
भले धूप हो कड़क
या पुल
घर दुआर भूल
नींव रखते हम
भूल कर गम
जोड़कर ईटें
कितना भी सर पीटें
मिलते कम पैसे
जैसे तैसे
ढोते बालू सीमेंट गिट्टी
गुम है सिट्टी पिट्टी
सत्ता क्रूर
मद में चूर
सोचती नहीं
हम हैं मजदूर
होते रोज़ सबेरे
चौक पर जमा
इस उम्मीद में
कि दिन भर में
लेंगे कुछ कमा
भर सकेंगे बच्चों के पेट
नहीं तो रेलवे लाइन पर जायेंगे लेट
कट जायेंगे
और बेवकूफ मंदबुद्धि और न जाने क्या क्या कहलाएंगे
#मज़दूरहैंहम #मजदूर #yqdidi #yqhindi
कितने मजबूर
गांव से दूर
रहते नागपुर
कुछ कानपुर
या सहारनपुर
बनाते अट्टालिकाएं,
तंबू या बंबे में अपने बच्चे सुलाएं
फुटपाथ या हो सड़क
भले धूप हो कड़क
या पुल
घर दुआर भूल
नींव रखते हम
भूल कर गम
जोड़कर ईटें
कितना भी सर पीटें
मिलते कम पैसे
जैसे तैसे
ढोते बालू सीमेंट गिट्टी
गुम है सिट्टी पिट्टी
सत्ता क्रूर
मद में चूर
सोचती नहीं
हम हैं मजदूर
होते रोज़ सबेरे
चौक पर जमा
इस उम्मीद में
कि दिन भर में
लेंगे कुछ कमा
भर सकेंगे बच्चों के पेट
नहीं तो रेलवे लाइन पर जायेंगे लेट
कट जायेंगे
और बेवकूफ मंदबुद्धि और न जाने क्या क्या कहलाएंगे
#मज़दूरहैंहम #मजदूर #yqdidi #yqhindi
No comments:
Post a Comment