हे कुम्हार
गढ़ों आकार
करो साकार
तुम हो निर्विकार
पाकर तुम्हारा स्पर्श
होगा उत्कर्ष
भरोगे प्राण
पहनाकर वस्त्र और आभूषण
करेगी रौद्र रूप धारण
होगा असुरों का संहार
और हमारे विकार
अभी हैं नग्न
जैसे हम थे
माता के गर्भ में
और पैदा होते वक्त भी
पर जैसे हम हुए बड़े
हमारे पाप के भरे घड़े
अवगुण हुआ हावी
नरक बना भावी
आख़िर क्या हुआ
न जाने किसने छुआ
किसका मिला अभिशाप
कोख में हम भी तो थे निष्पाप...!!
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