दफ्न होता है एक शायर पंद्रह को
सन अठारह सौ उनहत्तर में
जानते हैं लोग उसे ग़ालिब के नाम से
पैदा होता है एक फ़नकार इनकी रूह लिए
आठ फरवरी को सन उन्नीस सौ इकतालीस में
जी उठता है फिर से ग़ालिब
अपनी गज़लें सुन इनकी आवाज़ में
नाम जिसका है जगजीत
एक दूसरा अजीम शायर
सुपुर्दे ख़ाक होता है आठ को ही
दो हजार सोलह में
नाम था जिसका निदा फ़ाज़ली
ग़ालिब, जगजीत और निदा फ़ाज़ली
दो शायरों के बीच एक फ़नकार
इनके फ़न के समंदर में जो डूबा सो लगे पार
इनका रिश्ता कितना सुहाना है
ये फरवरी का महीना है
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