Sunday, May 26, 2024

पूर्व वर्ती

बरसों बाद गया था मैं उस दफ्तर में

 जहाँ कभी मैंने बहाए थे पसीने                                  

सब कुछ बदल गया था                                                 

 नए कर्मचारी थे और हाकिम भी                                 

मैं जिस कुर्सी पर बैठता था                                           

 वह भी बदल गयी थी                                                    

एक्जीक्यूटिव कुर्सी पर विराजमान थे नए प्रभारी                

उनके कक्ष में लगे प्रबंधकों की सूची में                             

मेरा नाम बारहवें स्थान पर था                                          

नए प्रभारी सोलहवें क्रमांक पर थे                                    

आगे की जगह उनके बाद वालों के लिए खाली थी                

मैंने उन्हें ऑफिस की कायापलट के लिए बधाई दी

उन्होंने अपनी सफाई दी                                                

कहा,                                                                      

"पूर्ववर्तियों ने चौपट कर रखा था"                                  

अब मेरे लिए कुछ बोलने के लिए नहीं बचा था                    

बिना परिचय दिए मैं वापस चला आया

रात भर सोचता रहा                                                    

मेरे ग्यारह पूर्ववर्तियों ने कितनी मिहनत की होगी                

उनके छोड़े कामों को मैंने सर आँखों पर लिया था                

तभी तो मेरा वहाँ पसीना बहा था

पुल

 मोरबी में हुए पुल हादसे से जोड़ती हुई एक कविता


एक पुल बनाया था पिताजी ने

दो कुलों को जोड़ा था

त्याग के पाए थे

ममता के साए थे

मज़बूत और भरोसेमंद

एक दूसरे के लिए फ़िक्रमंद

विश्वास के लगे थे सरिए

मिलने जुलने के थे ज़रिए

और थे सद्भाव के गारे 

सह लेते थे दूरदराज़ के रिश्ते हमारे


जब हट गया उनका सर से साया

पुल पहली बार थरथराया 

आने जाने से होने लगा कम्पन

मिलने जुलने पर भी नहीं खिलता मन

रिक्त हो गया मन का एक कोना

अपने हिस्से रह गया बस रोना

हिले थे पुल के पाए

कौन किसका हिस्सा खाए


किसी ने नहीं सोचा इस पुल की मरम्मत हो

जो आगे आये उनमें कोई शराफत हो

जो समझे जाते रखवाले थे

उन्हीं के सबसे बड़े निवाले थे

उन्होंने ही लिया था जिम्मा संवारने का

फिर से रिश्ते की मधुरता निखारने का

पर लालच सच में बहुत बुरी बला है

जिसको पकड़ ले उसका दुर्दिन नहीं टला है


एक दिन उन्होंने लिया सारा माल गटक

पुल मरम्मती का काम बीच में ही गया अटक

यह देखकर जब हम सब उसपर दौड़े थे

पाए खिसक गए और हम भहरा कर गिरे थे


ऐसा ही कुछ मोरबी के पुल हादसे में भी हुआ

ठेका पाने के लिए बड़े व्यापारी ने खेला जुआ

जिसे मिला था पुल मरम्मती का जिम्मा

वह निकला कितना बड़ा निकम्मा

न जाने कितने लोग मरे थे

जब वे कमज़ोर पुल से गिरे थे

उनके घर पसरा मातम

कैसा उसने ढाया सितम

डेढ़ सौ मौतें मुद्दा है एक बहस का

पर सवाल यहां सबसे बड़ा इंसान की हवस का


#morbi #मोरबी #हादसा #yqdidi

मणिपुर की स्त्रियां

नहीं बनी अब तक कोई ऐसी मशीन

जिसने मापी हो

मजदूर

हम मजदूर
कितने मजबूर
गांव से दूर
रहते नागपुर
कुछ कानपुर
या सहारनपुर
बनाते अट्टालिकाएं,
तंबू या बंबे में अपने बच्चे सुलाएं 
फुटपाथ या हो सड़क 
भले धूप हो कड़क
या पुल
घर दुआर भूल
नींव रखते हम
भूल कर गम
जोड़कर ईटें
कितना भी सर पीटें
मिलते कम पैसे
जैसे तैसे
ढोते बालू सीमेंट गिट्टी
गुम है सिट्टी पिट्टी 
सत्ता क्रूर
मद में चूर
सोचती नहीं 
हम हैं मजदूर
होते रोज़ सबेरे  
चौक पर जमा
इस उम्मीद में
कि दिन भर में 
लेंगे कुछ कमा 
भर सकेंगे बच्चों के पेट
नहीं तो रेलवे लाइन पर जायेंगे लेट
कट जायेंगे
और बेवकूफ मंदबुद्धि और न जाने क्या क्या कहलाएंगे
#मज़दूरहैंहम #मजदूर #yqdidi #yqhindi

Thursday, May 23, 2024

फरवरी का महीना

 दफ्न होता है एक शायर पंद्रह को 
सन अठारह सौ उनहत्तर में
जानते हैं लोग उसे ग़ालिब के नाम से 

पैदा होता है एक फ़नकार इनकी रूह लिए 
आठ फरवरी को सन उन्नीस सौ इकतालीस में
जी उठता है फिर से ग़ालिब 
अपनी गज़लें सुन इनकी आवाज़ में
नाम जिसका है जगजीत

एक दूसरा अजीम शायर 
सुपुर्दे ख़ाक होता है आठ को ही
दो हजार सोलह में
नाम था जिसका निदा फ़ाज़ली 

ग़ालिब, जगजीत और निदा फ़ाज़ली
दो शायरों के बीच एक फ़नकार
इनके फ़न के समंदर में जो डूबा सो लगे पार 
इनका रिश्ता कितना सुहाना है
ये फरवरी का महीना है


अभी थोड़ी जान बाक़ी थी...

 

हर बदन में होती हैं दो जानें
ज़िंदा रहने के लिए 
दोनों की सांसें चलना जरूरी है

एक से ज़िंदा रहता है बदन
दूसरे से समाज चलता है

एक की सांस रुकने पर  
मर जाता है इंसान
दूसरी की रुकने पर 
मर जाता है समाज

तब दफ्न कर देता है इंसान
अपने ही बदन में गहरे अंदर इसे
ढोता है अपना ही बदन
इस लाश को लिए हुए

गुजरे ज़माने में इस दूसरी जान 
को मरने नहीं देते थे लोग
कठिन तो होता था 
इसकी सांसें बचाए रखना
पर बचा ही लेते थे किसी तरह
झुकते नहीं थे
इसके मरने की सूरत में
मर जाते थे ख़ुद भी
कोई संशय नहीं होता था
रुक जाती थी सांसें स्वतः
पहली जान की भी 
पश्चाताप से

वक्त के साथ कीमत घट गई इसकी
समझौता कर लिया इसने परिस्थितियों के साथ 
अब मौक़ा देखकर चलती या रुकती है यह
कभी जीती तो कभी मरती है 
सुविधा के हिसाब से
इसे जिंदा रखना और मारना चलता रहता है 

इसके मरने से अब मातम नहीं मनाता इंसान
ख़ुद मर जाना तो दूर
इसे दफ़न करने पर 
बोझ भी नहीं महसूस करता है वह

दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में आ गया यह
"Endangered species" 
लुप्त हो सकता है यह कुछ दिनों में
इसके पहले कि भूल जाएं हम 
याद कर लें इसका नाम
ज़मीर या अंतरात्मा कहते हैं इसे

इसे मारा है मैने भी अक्सर
और जीया है शान से
अभी थोड़ी जान बाक़ी थी 
जो लिख सका बयान ये

#ज़मीर #अंतरात्मा #yqdidi #yqhindi

कुम्हार

 हे कुम्हार
गढ़ों आकार
करो साकार

तुम हो निर्विकार
पाकर तुम्हारा स्पर्श
होगा उत्कर्ष

भरोगे प्राण 
पहनाकर वस्त्र और आभूषण
करेगी रौद्र रूप धारण
होगा असुरों का संहार
और हमारे विकार

अभी हैं नग्न 
जैसे हम थे
माता के गर्भ में
और पैदा होते वक्त भी

पर जैसे हम हुए बड़े
हमारे पाप के भरे घड़े
अवगुण हुआ हावी
नरक बना भावी
आख़िर क्या हुआ
न जाने किसने छुआ 
किसका मिला अभिशाप
कोख में हम भी तो थे निष्पाप...!!

राजनीति, धर्म और मोहब्बत

ऐसा नहीं कि मैं राजनीति या धर्म पर 
कुछ कह नहीं सकता
पर धर्म के नाम पर राजनीति हो 
या धर्म में राजनीति समा जाए
यह मैं सह नहीं सकता

धर्म व्यक्तिगत आस्था का नाम है
राजनीति का इसमें क्या काम है
यह व्यक्ति को ऊंचा उठाता है
मानवता का पाठ पढ़ाता है
परहित के साथ स्वयं का भी करता उत्कर्ष है
विषाद को खत्म कर धर्म लाता हर्ष है

राजनीति का उद्देश्य भी जनता की भलाई है 
सत्ता के शीर्ष पर बैठ खाना नहीं मलाई है
मानव कल्याण ही राजनीति का गंतव्य है
इस मायने में राजनीति और धर्म का एक ही मंतव्य है
पर दोनों के अनुयायी भटक गए हैं
मूल सिद्धांतों को छोड़ स्वार्थ में अटक गए हैं
धर्म और राजनीति दोनों बन गए व्यापार हैं
सत्ता पाने के उपकरण और हथियार हैं

केवल राजनीति को देखें तो 
इसमें बड़े पंगे हैं
इस हम्माम में सभी नंगे हैं

राजनीति और धर्म की बातों से
अक्सर बढ़ जाता विवाद है
पर मोहब्बत की बातों से आप सहमत न भी हों 
तब भी नहीं प्रतिवाद है
राजनीति और धर्म के विवाद में होती बहुत तल्खी है
मोहब्बत की बातों से मगर मिलती बहुत खुशी है

इसलिए मैं राजनीति और धर्म पर कभी कुछ नहीं लिखता
कहने और लिखने के लिए मोहब्बत ही सबसे अच्छा विषय लगता

मोहब्बत की बात करो तो मन रहता है खिला खिला
हर परिस्थिति में ख़ुशी का रुकता नहीं है सिलसिला...!!

गौरैया

नन्ही गौरैया
खूबसूरत गौरैया
उसके छोटे छोटे बच्चे
लगते थे कितने अच्छे
उसका घर परिवार
सुबह से ही लाती खर पतवार
जमा करती रोशनदान में
या पंखे के ऊपर ढक्कन में
देखते देखते बना लेती आरामदायक घोंसला
सिखाती हमें जीवन जीने की कला
बच्चे पलते थे उसके उसमें
दाना लाती या कीट पतंग
रहती हमारे ही संग

अब घर हो गए तंग
हो गए रोशनदान बन्द
गायब हो गई गौरैया हमारे घरों से
उड़ गई अन्यत्र अपने नन्हें परों से
रहता हूं मैं खौफ़ज़दा
पाकर उसे गुमशुदा
अब घर हो गया सूना 
उसके बिना
कितना अच्छा लगता था 
संग जीना
चींची कर हमे जगाती थी
मेहनत का पाठ पढ़ाती थी
अब कहां मिलेगा वह साथ 
और जीवन का पाठ
हमारी ही कोई गलती रही होगी
रोक न पाए उनके लुप्त होने का सिलसिला
वरना यूं घर छोड़कर कोई जाता है भला