बुक शेल्फ में पडी सदियों पुरानी फाउंटेन पेन
मेज़ पर रखे पेन-स्टैंड में सजे
रंग-बिरंगे बॉल-प्वाइंट पेन से कहती है,
बहन...
आज तुम्हारा ज़माना है
पर कल मेरा ज़माना था
बीस-पचीस वर्ष ही हुए कि मैं पुरानी धरोहर की तरह
बतौर बाप-दादाओं की निशानियाँ
किसी सन्दूक में,
माँ-दादी के टिनही बक्से में
या बुक शेल्फ में किताबों की कतारों के पीछे
सहेज कर रख दी गई...
वक्त की रफ्तार में तुमने मुझे काफी पीछे छोड दिया
पर भूली-बिसरी यादों की धूल हटाने पर मुझे
आज भी याद है
जब प्रेमचंद की खुरदुरी ऊँगलियों ने मुझे बडे ही एहतियात से सँभाला था
और गोदान के पन्नों पर दौडाया था
मुझे यह भी याद है
जब गुरुदेव टैगोर ने मुझे स्नेहिल स्पर्श दिया
दिव्य प्रेम और समर्पण से उन्होंने मुझसे काग़ज़ों पर
मोतियों के दाने बिखराए और
गीतांजलि के छन्द लिखवाए...
न जाने कितने महानुभावों ने मुझसे साहित्य और विज्ञान
की उत्कृष्ट रचनाएँ करवाईं
जिनके विचार उनके ज़ेहन से होते हुए ऊँगलियों के रास्ते
मेरी निब पर अक्षर बनकर उभरते थे
और मैं सरपट काग़ज के उन पन्नों पर दौडती थी..
मुझे धुँधली-धुँधली याद अभी भी है कि
लोग मुझे उपहारस्वरूप दूसरों को दिया करते थे
महँगी भी हुआ करती थी मैं
’एवर
शार्प’, ‘पार्कर’, और ‘ब्लैक बर्ड’ नाम की मैं
दामादों को बतौर नज़राना दी जाती थी
उनकी शेरवानी या कोट की ऊपरी ज़ेब में
चमकती, इठलाती फिरती थी मैं
वियोग और विछोह के दिनों में
उनके प्रेम-पत्रों की मैं राजदार बनी
मुझे इस बात का फ़ख़्र है कि
बचपन में अपने पिता की मेज़ से उठा लेने के
ज़ुर्म में नेहरू की पिटाई का मैं कारण बनी थी...
पर अब यह सब गुज़रे ज़माने की बातें हैं
मुझमें प्राण-रस का संचार करने वाली
’चेलपार्क’, ‘सुप्रा’ और ‘सुलेखा’ भी सूख गई
कइयों की कमीज़ें ख़राब करने का इलज़ाम भी लगा उनपर
मैं अकेली क्या करती?
चुपचाप अतीत की यादों के सहारे जी रही हूँ
पर एक बात कहना चाहती हूँ बहन...
बुरा मत मानना..
जीने के लिए तुम्हें भी मधुर यादों को संजोना होगा
मैं यह मानती हूँ कि ‘ज़ेल’ और ‘सेलो’ से
तुममें निखार आया है
पर जब तुम्हें याद आएगा कि लोग तुम्हें
‘यूज
एंड थ्रो’ भी कहते थे
तो क्या अच्छा लगेगा ?
एसएमएस के युग में लिखना भूल रहे लोग
न जाने कैसी-कैसी चीजों के लिए
तुम्हें आजकल व्यवहार में ला रहे हैं,
सुनकर हैरत होती है
कोई तुमसे अपनी पीठ खुजाता है
तो कोई कान
कोई पाज़ामे में नाडे घुसाने के लिए तुम्हें ढूँढता है
तो ट्रेनों में बंद पंखे घुमाने के भी काम आ रही हो तुम..
सोचो, कल जब तुम भी अतीत के गर्त में जाओगी
तो क्या इन्हीं यादों के सहारे जियोगी ?