भुलाए न भूलेगा मुझे वो दिन
देखना इंडिया हैबिटैट सेंटर में
एक मुसव्विर का शाहकार
चित्र जैसे बोलते हों
और हो जाते हों साकार
कैनवास पर उकेरे अज़ीज के घोडे
इतने जीवंत कि मेरे मन को भी ले उडे
कहीं बनारस के घाट तो कहीं गोलकुंडा के किले
कभी अजंता की गुफा में या महाबलीपुरम चले
ताल-तलैयों में ‘लिली’ के फूल या सुंदर कंवल
जैसे छिटकी चाँदनी में आसमां गाता ग़ज़ल
हर कृति अलफाज़ से परे थी
क्या ख़ूब रंगों की छटा थी
बादलों की ओट में छिपता चाँद
या फिर कहीं काली घटा थी
अब यही दिल में उठ रही हैं ख्वाहिशें
अल्लाह करे उन पर हों बरकतों की बारिशें !!
23.2.2011
(अज़ीज़ साहब विश्वविख्यात चित्रकार हैं जिनसे मिलने का सौभाग्य मुझे दिल्ली प्रवास के दौरान हुआ था)
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