मदर्स डे पर कल
अम्मा का पुराना टीन का बक्सा खोला
एक पुरानी बनारसी साडी निकली
जिसके पाड में सोने की ज़री का काम था
एक वूलेन शॉल मिला
जिसमें अभी तक कीडे नहीं लगे थे
एक चाँदी की तश्तरी
फूल का एक लोटा
पूजा की एक थाली
जिसकी चमक उसके लगातार माँजे जाने की निशानी थी
सफेद तकिए के दो कवर,
उसपर की गई कढाई,
क्रोशिया की बिनाई वाली एक झालर
कुश और मूँज से बनाई गई
लाल, पीले और हरे चटक रंगों की एक डलिया
एक अलबम
काले पन्नों पर सटी
बाबूजी के युवावस्था से लेकर
हम सब के बडे होने तक की
श्याम-श्वेत तस्वीरें
एक तस्वीर में माँ की गोदी में
निश्चिंत सा पसरा गुलथुल सा
मेरा छोटा भाई और बगल में खडा मैं
‘एलिफैंट
ब्रांड’ की दो-चार कापियाँ
उनमें लिखे महादेवी और टैगोर के गीत
एक डायरी
जिसमें उतारी
’नवनीत’, ‘धर्मयुग’ या ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ से
खूबसूरत नज़्में और शायरी,
इन सारी चीजों को बचाकर रखने
और मुझतक सौंप देने की जिम्मेदारी निभाती
बक्से की तह में पडी
दुबली हो चुकी
कई
कई
नेफ्थलीन की गोलियाँ !!
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