Friday, June 29, 2012

बात


बात बहुत पुरानी हो गई
इतनी पुरानी कि
याद नहीं कि क्या बात थी..
बस याद है
अभी मैं जिस दोराहे पर खडा हूँ
वहीं हम मिले थे कभी
वह उत्तर वाली सडक से आई थी
और मैं दक्षिण
हम मिले
बातें हुईं
फिर मिलने का सिलसिला निकला
बात से ही बात निकलती है
और बात से ही बात बढती है
बात निकली
फिर बात बढी
इतनी बढी कि
एक छोटी सी बात बडी हो गई
बात के बढने से
हमारे दरम्यान फासले बढे
कुछ उसने कहा
कुछ मैंने
मैंने अपनी सफाई में एक बात कही
उसने दो-चार
मैंने उसे खतावार ठहराया
उसने मुझे
बात खत्म करने के लिए
हमने रिश्ते खत्म करना मुनासिब समझा
आज इसी दोराहे पर खडा मैंने देखा
दोनों रास्तों से अलग
एक पगडंडी निकल आई है
शायद मेरी ही तरह किसी और ने
बात खत्म करने के लिए
तीसरा रास्ता चुना होगा
पगडंडी बना ली होगी
रिश्ते बचा लिए होंगे
मैं पगडंडियों पर चलने लगा
चलते-चलते दोराहे को देखता हूँ
वही रास्ते जिनपर अलग-अलग हम आए थे
और फिर जुदा हो गए
फिर सोचता हूँ
आखिर बात क्या थी
मुझे याद नहीं
सिर्फ इतना याद है
बात बहुत छोटी थी...

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