‘पिताजी मुझे आशीर्वाद दीजिए
मैं घर छोड कर जा रहा हूँ’,
”कहाँ?”
”ढूंढने रिश्तों को
परिवार को
मोहल्ले को
समाज को
प्रांत को
फिर देश को...
वह देश
जहाँ नहीं हो किसी के दिल में द्वेष
वह प्रांत
जहाँ नहीं हो कोई भी क्लांत
वह समाज
जहाँ सबके लिए हो काम-काज
वह मोहल्ला
जहाँ व्यर्थ न हो हल्ला-गुल्ला
वह परिवार
जहाँ अतिथियों का हो सत्कार
वह रिश्ता
जिसमें हो प्यार और सहिष्णुता”
पिता ने गहरी साँसें लीं
बरसों पहले वे भी निकले थे ढूँढने
यही सब
पर थक हार सब्र कर लिया था उन्होंने
आज फिर जगी एक आस
उन्होंने आशीर्वाद दिया
काश,
पूर्ण हो तुम्हारी तलाश..!!
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