मेरे घर के आगे जो रस्ता था
वह एक मोड से
रेलवे क्रॉसिंग की ओर मुड जाता था
वह मोड महज एक मोड न था
जहाँ से राहगीर रेलवे लाइन के उस पार जाते थे
वह मोड एक पडाव था
एक ठहराव था
उसी मोड पर ही तो वो गुलमोहर का पेड था
जिसकी शाखों पर अनगिनत
चिडियों के बसेरे थे
मोड की दूसरी तरफ ही वह घर था
न जाने कितनी बार उसी मोड पर
आते जाते मैं रुका हूँगा
उस वक्त
जब उस घर के दूसरे माले पर
एक दरीचा खुलता था
और कितनी गौरेया उस दरीचे
से उस घर में बेहिचक आती-जाती थीं
और मैं सोचा करता
काश!! मैं भी एक गौरेया होता.....
राहगीर रेलवे लाइन क्रॉस करने के लिए मोड से मुडते
मैं मोड पर रुका रहता
पेड के नीचे चिडियों की चहचहाट सुनता
देखता..
सामने वाले घर के उस माले से
एक खिडकी खुलती
एक अक्स उभरता
न जाने कितने लोग उस मोड से गुजरते
पर मेरे लिए उस मोड पर जिन्दगी ठहरी मिलती
मानो मोड ने ही मेरे पैर जकड लिए हों....
उस ठहराव में
कितना सुकून था
आराम था
ख्वाब थे
उम्मीद थी..
उम्र की रफ्तार में
एक दिन वह मोड गुम हो गया
रेलवे क्रॉसिंग के ऊपर से गुजरते हुए
एक ओवरब्रिज के कंक्रीट के मोटे-मोटे पाए में
और वह पेड भी
मोड के सामने वाला घर अब भी वहीं है
पर दूसरे माले की उस खिडकी के ठीक सामने से
गुजरता है
वह ओवरब्रिज
जिसपर दौडती फिरती हैं गाडियाँ और
रात के सन्नाटे को चीरती हैं लौरियाँ
पर अब गुम है वह मोड
वह पेड
और गौरेया
मोड के गुम होते ही
पेड के गुम होते ही
गौरैया के गुम होते ही
बन्द हैं अब खिडकियाँ ...
और मैं भी वक्त की रफ्तार में
ओवरब्रिज आनन-फानन पार कर लेता हूँ....
पर मुड जाती है मेरी गर्दन
उस बन्द खिडकी की तरफ
आते-जाते उस ओवरब्रिज से
मोड पर उस पुरसुकून ठहराव की याद में....!!
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