Tuesday, March 8, 2016

नारी

1.
नारी तुम चेतना हो
करुणा हो, प्रेरणा हो
कल्पना हो, अल्पना हो
पूजा और अर्चना हो

वनिता हो, ममता हो,
त्याग की प्रतिमूर्ति हो
गहन सहनशीलता
यश और कीर्ति हो

जननी हो, पालक हो
सबकी संरक्षक हो,
रहस्यमयी माया हो
सौंदर्य की काया हो

घर और परिवार हो,
सुसंस्कृत समाज हो
सुंदर भविष्य और
प्रगतिशील आज हो  

ज्ञान की देवी हो,
सुख और समृद्धि हो
कुल की मर्यादा हो
सम्पदा की वृद्धि हो

जीवन-संजीवन हो,
हृदय का स्पंदन हो  
विजयी भाल पर चंदन
और अभिनंदन हो

शांति सौहार्द्र हो
उत्साह और उमंग हो
संग जो हो तुम्हारा,
जीवन सतरंग हो

रुप हो रंग हो और
गुणों की खान हो
सादगी जहाँ सुंदरता  
कवियों की बखान हो

स्वतंत्रता की परिभाषा
किंतु मर्यादा हो
सभ्यता का प्रतीक
और निडर निर्भीक हो

सौम्या हो स्नेहिल हो
प्रेम की धारा हो
स्पर्शमात्र से तुम्हारे
सुधा, जल खारा हो

गति हो प्रगति हो
रति और सुमति हो
तुमसे ही पूर्णता
और सदगति हो  

भाव हो नृत्य हो
गीत और संगीत हो
माधुर्य से ओत-प्रोत
जीवन का मीत हो

पुरुषों की साँस हो
जीने की आस हो
गृहस्थ आश्रम में ही 
योग और सन्यास हो

वंदना सम्वेदना
मान और सम्मान हो
आन हो बान हो
तुम ही तो प्राण हो


2.

(नारी का एक रूप यह  भी)
कितना उपवास रखती हो तुम
आज शनिवार है
सुंदर कांड का पाठ करोगी तुम
क्या कहा, मेरे लिए?
और वृहस्पतिवार को साईं बाबा का व्रत?
वो तो बेटे की सफलता के लिए
ठीक है, फिर रविवार को यज्ञ-हवन क्यों?
बेटी के लिए... एक पंडित ने कहा था
बहुत हो गया,
मंगल को हनुमान मंदिर जाना जरूरी है क्या ?
हाँ, निरोग काया रहे, शक्ति और भक्ति रहे इसलिए
तो बुध को गणपति क्यों
बुद्धि के लिए
फिर सोम को तो कुछ आराम करो,
शंकर को जल चढ़ाना क्यूँ
आप खुश रहें इसलिए
चलो, हटो..मैं तो खुश हूँ 
सबको उनके हाल पर छोड़ो 
अपने लिए भी कुछ जियो 

अपने लिए ही तो मैं जी रही हूँ
ये व्रत-उपवास कर रही हूँ
बच्चे और आप ही तो हैं
मेरे अपने
सिर्फ मेरे अपने..!!  



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