Sunday, February 14, 2016

हनुमनथप्पा की याद में

माँ यह कैसा शोर है
सोने नहीं देता मुझे चैन से
दफ़्न हो कर भी

सियाचीन में बर्फ़ में जब दबा हुआ था मैं
मुझे तेरी बहुत याद आई थी
याद आए थे मेरे कई साथी भी
जो मुझसे कुछ दूरी पर ही दबे पडे थे  
मुझे नहीं पता कि उनमें कितनों ने
दम तोडा था मुझसे पहले
ठंढ से काठ हो चुकी थी साँसे सबकी
पर फख़्र है हमें इस बात का
कि तेरी हिफाजत में कोई कसर नहीं छोडी थी हमने   

साँसे तो मेरी भी उखडने को बेताब थीं
पर तेरी हथेलियों की गर्माहट
अपने गालों पर महसूस कर
सुनता रहा था तेरे दिल की धडकन  
थाम रखा था तेरी आस और सबकी दुआओं ने
मुझे कई दिनों तक

बर्फ़ की चादर हटा निकल गई जब रूह मेरी  
क्यों नहीं मिल रही पनाह मुझे
कह दो इन सरफिरों से
इतना शोर न करें  
बोलने की आज़ादी के नाम पर 
कितना बोलते हैं सब 

माँ, तेरी हिफाज़त की चिंता अब
खाए जा रही है मुझे  
शोर ये थमे 
के नींद आए मुझे..!!   


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