Monday, March 21, 2016

बतरस


आओ बात छीलें
घनी आबादी के इस जनअरण्य में
पेड़ उगे हैं कई बातों के
आओ, किसी एक मसले का पेड़ चुन लें 
उसे उखाड़ें 
आरा मशीन पर चढ़ाएँ 
काटें,
फिर छीलें
छीलते जाएँ
थक जाएँ तो छोड़ दें
फिर चुन लें कोई नया पेड़ 
उस जंगल से
छाँटें,
उस पर रैंदा चलाएँ
छीलें,
लगे रहें हम इस रोज़गार में
अच्छा 'एंगेजमेंट' है यह 

बात कोई काठ नहीं
जो हो जाए चिकनी
आओ न..
कोई बात चुनें
छीलें...!!


(आजकल टी.वी. पर चल रहे निरर्थक मुद्दों जैसे देशभक्ति, भारत माता की जय बोलना इत्यादि पर आ रही निरंतर बहस से प्रभावित यह कविता)

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