कभी कभी जाने अनजाने हम ऐसा कुछ कह जाते हैं
दिल पर गहरा बोझ लिए फिर जीवन भर पछताते हैं
बत्तीस दाँतों के पहरे में भी जीभ फिसल ही जाती है
धनुष से छूटे बाण कहाँ, फिर वापस आ पाते हैं
कोई गलती एक बार हुई हो तो यह बात अलग है
ठोकर खा कर भी हम क्यूँ उस गलती को दोहराते हैं
हर ज़ख़्मों में सबसे गहरा ज़ख़्म है कड़वी बातों का
लाख लगाओ मरहम फिर भी दाग़ कहाँ धुल पाते हैं
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