1.
मैं कौन हूँ ....
मैं सुधांशु हूँ....
पर यह तो महज नाम है मेरामेरे होने का तर्ज़ुमा
जिसे सुनकर लोग जान पाते हैं
कि यह जो हाड-माँस का शख्स
चल रहा है इस वक्त ज़मीं पर
उसका एक दिखता हुआ वज़ूद है
पर जब ज़मी दफ़्न कर लेगी इसे
या समन्दर निगल जाएगा उसकोया ख़ाक हो जाएगा वह जल कर
जब बिसर जाएगी छवि उसकी लोगों के दिलों-दिमाग से
जब भूल जायेंगे लोग उसकी आवाज़
और नाम भी मद्धम पड जाएगा ज़ेहन में
तब, सोचता हूँ मैं,
'मैं' कहाँ रहूँगा उस वक्त..
बडा जिद्दी है यह शख्स
जहाँ भी रहेगा यह शख्स उस वक्त
करता रहेगा फिर से उभरने की तैयारी
नया चोला ये अपना बदलेगा
धरेगा रूप नया
नया एक नाम होगा उसका
फिर उभरेगा ज़ेहन में एक सवाल
कौन है वह...?एक आवाज़ आएगी
दिल के कोने से
'बहुरुपिया’
3.
मिल गई मुझे वो डायरी
लिखा है मेरे पुरखों ने उसमें
नए होने से पुराने होने तक के सफर की कहानी
हमराही है यह ‘मैं’ उस सफर का
उलझा रहता है जो
नाम में,
ओहदा, धन और ऐश्वर्य में
5.
‘वह’ इक सवाल है
इक कहानी है
अपने होने के पहले
और न होने के बाद के सफर की कहानी
कौन हूँ मैं...
नया रूप लिए
नया रंग लिए
नया रंग लिए
जीने का नया ढंग लिए
जब आ जाएगा फिर से बहुरुपिया
फिर उठेगा ज़ेहन में इक सवाल
‘कौन हूँ मैं....’
जब आ जाएगा फिर से बहुरुपिया
फिर उठेगा ज़ेहन में इक सवाल
‘कौन हूँ मैं....’
मैं सोचता हूँ अक्सर
काश मिल जाए कभी
वह डायरी
या पुरखों की किताबें
दर्ज किया हो जिसमें मेरे पुरखों ने शायद
मेरा पिछला नाम
मेरा रूप-रंग या मेरे बारे में कुछ भी
तो जान पाऊँ मैं
कौन हूँ मैं...?
4.
या पुरखों की किताबें
दर्ज किया हो जिसमें मेरे पुरखों ने शायद
मेरा पिछला नाम
मेरा रूप-रंग या मेरे बारे में कुछ भी
तो जान पाऊँ मैं
कौन हूँ मैं...?
4.
मिल गई मुझे वो डायरी
लिखा है मेरे पुरखों ने उसमें
नए होने से पुराने होने तक के सफर की कहानी
हमराही है यह ‘मैं’ उस सफर का
उलझा रहता है जो
नाम में,
ओहदा, धन और ऐश्वर्य में
पर ज़ारी रहता है एक सफर और भी
पुराने का फिर से नए होने के बीच का सफर
कायम रहता है जिसमें न दीखने वाला वजूद
मिट जाता है जहाँ नाम, धन, और पद का महत्त्व
उस नाम के अलावा जो मैं हूँ
उसके बारे में नहीं लिखा है
वह कौन है....
कायम रहता है जिसमें न दीखने वाला वजूद
मिट जाता है जहाँ नाम, धन, और पद का महत्त्व
उस नाम के अलावा जो मैं हूँ
उसके बारे में नहीं लिखा है
वह कौन है....
5.
‘वह’ इक सवाल है
इक कहानी है
अपने होने के पहले
और न होने के बाद के सफर की कहानी
इक जद्दोज़हद है
अपने होने के बाद न
होने की जद्दोजहद
और न होने के बाद
फिर से होने के बीच की
यह सवाल खाए जाता है मुझे
क्या कभी देख पाऊँगा उसे
यह ‘मैं’ देखना चाहता है
उस ‘वह’ को....
और न होने के बाद
फिर से होने के बीच की
यह सवाल खाए जाता है मुझे
क्या कभी देख पाऊँगा उसे
यह ‘मैं’ देखना चाहता है
उस ‘वह’ को....
6.
आखिर मिल गया जवाब
लिखा है इक जगह
आत्मा हूँ मैं
शरीर नहीं....
परमात्मा से निकला हूँ और
उसी में मिल जाने की यात्रा है
शरीर नहीं....
परमात्मा से निकला हूँ और
उसी में मिल जाने की यात्रा है
फिर ज़ेहन में उभरा एक सवाल
पिछली दफा क्यों निकला परमात्मा से
क्यों अलग हुआ उससे
क्यों अलग हुआ उससे
जानना चाहता हूँ वह तवारीख
वो काल
वो समय
वो पल
वो क्षण
जब अलग किया था मुझे परमात्मा ने
और छोड दिया एक अंतहीन यात्रा में
जनम मरण के चक्कर में
जानना चाहता हूँ
अलग होने की वो वजह
वो समय
वो पल
वो क्षण
जब अलग किया था मुझे परमात्मा ने
और छोड दिया एक अंतहीन यात्रा में
जनम मरण के चक्कर में
जानना चाहता हूँ
अलग होने की वो वजह
या कभी जुडा ही नहीं
और चल रही एक ऐसी यात्रा
जिसे कहते हैं जुडने की यात्रा
अनंत की यात्रा
नाम बदलते रहने की यात्रा
तब तक बदलता रहेगा मेरा नाम
जब तक मिट न जाए मेरा होना
और दफ्न हो जाए यह सवाल
जिसे कहते हैं जुडने की यात्रा
अनंत की यात्रा
नाम बदलते रहने की यात्रा
तब तक बदलता रहेगा मेरा नाम
जब तक मिट न जाए मेरा होना
और दफ्न हो जाए यह सवाल
फिर भी ज़िन्दा रहेगा एक सवाल
यह होने न होने की
अंतहीन यात्रा क्यों..
यह होने न होने की
अंतहीन यात्रा क्यों..
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