चाँद दिल्ली में डरा
सहमा लगा है मुझे
छिप छिप कर रहता है
ऊँची इमारतों के पीछे
चाँद पटना में भी
देखे हैं मैंने
ताड के पेडों से
झाँकते अक्सर
धनबाद में कम ही
दिखता है मेरे अपार्टमेंट से
खिल कर निकलता है
मधुबनी का चाँद
उतर आता है आसमाँ के
ज़ीने से मेरे कमरे में अक्सर
या चढ जाता है आसमाँ
के सबसे ऊपर माले में
यूँ चमकता है फिर पूरी
रात और बिखेरता है दुधिया रौशनी
जैसे हिमालय की चोटी
पर लहरा रहा हो परचम
कई बार ऐसा लगा है मुझे
जैसे छत के ऊत्तर
पास ही कैलाश हो
और दमक रहा हो चाँद
शिव
के मस्तक से
अच्छा लगता है मुझे
मधुबनी का चाँद
मुख्तलिफ है यह दूसरी
जगहों से
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