Sunday, September 7, 2014

इक लिहाफ बादलों का



1.

दिन भर टुकडे बादलों के
जमा करता रहा यह आसमाँ 
कडी धूप में
कितनी मेहनत से...

पोंछता रहा बादल भी अपनी रूई से
उसके माथे का पसीना


2.

शाम तक बनाया आसमाँ ने
सी सी कर बादलों के टुकडों से इक लिहाफ
लेकर सूई धूप की
और पिरोकर किरणों के धागे

पर कैंची हवा की काट देती 
बादलों के उस सीवन को
और बिखर जाते फाहे निकलकर उस सीवन से
जैसे निकलती रूइयाँ किसी फटे तोसक या तकिए से

झाँकता फिर रूप यौवन चाँदनी का
उघरते बादलों के उस सीवन से.



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