सबेरे से ही काम में
लग गया था आसमान
रात में मेहमाँ जो
आने वाला था उसके घर
बुहारता रहा फर्श दिन
भर
हटाता रहा बादलों के
‘डस्ट’
जहाँ भी नजर जाती
उसकी
इधर-उधर बिखरे रूई के गोलों पर
झट साफ कर देता
फिर धो डाला फुहारों से
शाम होते-होते
बिल्कुल साफ-सुथरा
धोया-पुंछा आसमान तैयार बैठा था अगवानी के लिए
तभी आसमान के दरवाज़े
पर
चमक उठा पूरनमासी का
चाँदलिए हाथ में अपने ज्योति कलश
खिलखिला उठा आसमान
देखकर अपना यह मेहमान
ख़ुश हो गया पूनम का चाँद भी
बरसाता रहा सुधारस
फलक से ज़मीं पर
अपने अक्षय अमृत कलश से
रात भर..!!
07.10.2014
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