Thursday, October 9, 2014

पूनम का चाँद


 

 

सबेरे से ही काम में लग गया था आसमान
रात में मेहमाँ जो आने वाला था उसके घर

बुहारता रहा फर्श दिन भर  
हटाता रहा बादलों के ‘डस्ट’ 

जहाँ भी नजर जाती उसकी
इधर-उधर बिखरे
रूई के गोलों पर
झट साफ कर देता
फिर धो डाला फुहारों से

शाम होते-होते बिल्कुल साफ-सुथरा
धोया-पुंछा आसमान
तैयार बैठा था अगवानी के लिए

तभी आसमान के दरवाज़े पर
चमक उठा पूरनमासी का चाँद
लिए हाथ में अपने ज्योति कलश
खिलखिला उठा आसमान
देखकर अपना यह मेहमान

 
स्वच्छ धवल निरभ्र आकाश देख
ख़ुश हो गया पूनम का चाँद भी
बरसाता रहा सुधारस   
फलक से ज़मीं पर
अपने अक्षय अमृत कलश से
रात भर..!!



07.10.2014

No comments: