Sunday, August 3, 2014

कोसी फिर मचली



 
खबरें ख़बरदार कर रही हैं रह रह कर
न जाने क्या खाया था इस नदी ने पिछले सप्ताह
प्यास बुझती ही नहीं उसकी
गटक ली है कई क्यूसेक पानी
अब पेट फूल गया है
तोडकर बाँध कहीं उगलना चाहती है

अपनी हद से कहीं ऊपर बह रही है कई दिनों से
दहशतज़दा हैं लोगों के चेहरे
2008 के मंजर याद आते ही रूह काँप जाती है
कैसे बहा ले गई थी कोसी
सबकुछ रातों-रात ही

ख़ौफ में डूबे चेहरे इकट्ठे हैं उस पुल पर
इकट्ठे किए हैं लोगों ने अपने सौ बरस के सामान
इन सालों में
पर उन्हें पता नहीं
कि एक पल में ही डूबेगा उनका तिनका-तिनका आशियाँ
कभी भी आ सकता है सर तक पानी
फिर छूटेंगे हाथ
कई रिश्तों के...!!
  


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