Monday, January 19, 2015

मेरी रूह मेरी साँसें मेरी जान मेरा दम


मेरी रूह, मेरी साँसें,
मेरी जान, मेरा दम
एक हैं या मुख़्तलिफ,
यह सोचते हैं हम

क़ैद है इक घर में जाँ
जहाँ घुटता उसका दम
साँसों का इक हिसाब है
जो होता हर पल कम

जबतक घर में जाँ है,
रूह आदमी के साथ है
घर के बाहर आते ही
फिर खाली उसका हाथ है

जाँ के निकलते ही
फिर मौत का है गम
दम से ही जीवन का
लहराता है परचम

जान, दम और साँस से
ज़िन्दगी की आस है
ये नहीं तो रूह को
ख़ुदा की रहती तलाश है


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