लो फिर जाडे का मौसम दबे पाँव आने लगा
हर सुबह फिज़ाँ में कोहरा भी है छाने लगा
फिर ठंढ से ठिठुरेंगे लोग अपने गाँव में
मोज़े तो क्या चप्पल भी न होंगे पाँव में
फिर रातें कटेंगी उनकी अलाव तापते
और दिन गुजारेंगे वे ठंढ से काँपते
फटे कपडों में उनके दिन तो गुज़र जायेंगे
पर रात में ठंढ से शायद कुछ मर जायेंगे
जुम्मन मियाँ का बक़रा स्वेटर पहन इतरायेगा
मिस जूली का टॉमी भी गर्म कपडों में सुकूँ पायेगा
फिर बूढी अम्मा खाँस-खाँस कर रातों को जगाएगी
पिछले बरस तो बच गई पर इस बार गुज़र जाएगी
फिर ख़बरें शीतलहरी की छपेंगी हर अख़बारों में
ऐ ख़ुदा, ज़िन्दगी बक्श दे अम्मा की इन जाडों में
30.11.2014
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