रोज़ ऑफिस जाते वक्त जब वार्ड रोब खोलता हूँ
देखता हूँ
हैंगर में टँगे कपड़े
यूँ लगते हैं जैसे कोई देह
अपना लिबास छोड़ निकल गई हो
या देह से रूह...
कोट यूँ दीखते हैं जैसे
निकल गया हो उसमें से सर अपनी गर्दन के साथ
और पैंट से ज्यूँ पैर कहीं
यूँ ही कुछ देर सर कटे कोट
और बिन पाँव की पैंट देखता हूँ
और फिर ख़ुद को...
जो कहने के लिए वार्ड रोब के सामने नंगा खडा है
पर है वह भी इक लिबास में
अपनी रूह के लिए देह का लिबास पहने
बिन रूह की देह अच्छी नहीं दिखती
मैं झटपट कोट को अपनी गर्दन और
पैंट को पैर पहना कर
उस लिबास को एक रूह दे देता हूँ..
इक लिबास के ऊपर दूसरा लिबास पहने
मैं ऑफिस चला जाता हूँ जहाँ
और न जाने कितने लिबास पहनने होते हैं मुझे...!!
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