उस दिन जो रेलवे स्टेशन पर बम ब्लास्ट हुए
बाल बाल बचा था मेरा भाई
एक दिन पहले ही
बम्बई से घर आया था वह
और वह जो बसों में आग लगाई गई थी
जिसमें बीस मरे और पचास गुमशुदा हुए
उस दिन मेरे चाचा ने न जाने क्या सोचकर
अपनी यात्रा मुल्तवी कर दी थी
उनकी ख़ैरियत सुन
हम सबों ने चैन की साँस ली थी
और हाँ, उफनती नदी में जो वह नाव पलटी थी
चालीस के चालीस नौका सवार तेज धार में
न जाने कहाँ लुप्त हो गए
वह घटना मेरे गाँव की थी...
पिताजी ने फोन कर के समाचार पूछे थे...
बहने वालों में कोई भी गोतिया-बिरादरी का न था
सभी अजनबी थे
आज अखबार में एक स्कूल की छत गिरने की खबर आई है
गम्भीर रूप से घायल करीब साठ मासूम बच्चे
लड रहे मौत से
अपनी बची-खुची बेचैन साँसों के साथ
पर दे गए मुझको चैन की साँस,
‘थैंक गॉड’
मेरा बेटा स्कूल में पढने की उम्र पार कर चुका है
हादसों के इन मंजर से महफूज़
बीत रहे मेरे साल-दर-साल
पर कल रात इन हादसों ने मुझे सोने न दिया
आँख में चुभती रहीं बम-ब्लास्ट से टूटे हुए शीशों की किरचें
जिस्म जलता रहा बस की जलती हुई टायर से
हाथ-पाँव मारता रहा उफनती नदी में रात भर
कान में आती रही बच्चों के कराहने की आवाज़
हादसों के शिकार ये अजनबी
क्यों हो गए मेरे इतने करीब ?
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