Tuesday, August 19, 2014

होस्टल मेस




हल्ला हंगामा
थालियों की खनखन
खाना देखकर
खाने को होता नहीं मन
  
दाल में पानी
तरकारी में मिर्ची
चावल में कंकर
जय जय शिव शंकर

फिर भी दौडता हूँ
होस्टल से मेस में
दो बजे तक ही मिलेगा
भात दाल तरकारी
याद आई महतारी.. .. 

Wednesday, August 13, 2014

गंगा सागर एक्सप्रेस



जयनगर से जब चलती है गंगा सागर एक्सप्रेस
एक बाँध सा खुलता जाता है हर स्टेशन पर
हहराता हुआ छूटता है
एक हल्फा लोगों का
उस बाँध से
गटक जाती है उस हल्फे को
अपने उदर में
चौदह डिब्बों की यह लम्बोदरा

रात भर का ठूसा हुआ
उगल देती है सियालदह स्टेशन पर  
अगली सुबह

एक सूनामी सा फैलता है एक पल के लिए
फिर दौडता फिरता है तूफान
शहर के बदन में फैली
छोटी-बडी नसों में
दिन भर...!!




Thursday, August 7, 2014

बेघरबार मुसाफिर हैं ये परिन्दे




रेलवे स्टेशन के प्लैटफॉर्म की शेड पर शोर मचाते परिन्दे
मुसाफिर की तरह ‘बिहेव’ करने लगे हैं
देर रात तक सोते नहीं हैं

आती जाती ट्रेनों से उतरते मुसाफिर की तरह
ये भी बेघरबार हैं
कहीं भी रात काट लेते हैं  

वक्त बेवक्त की परवाह किए बगैर
बीट करते रहते हैं

पटा है उनकी बीट से
आसनसोल का यह प्लैटफॉर्म



Wednesday, August 6, 2014

उम्र जो हो चली है



दूर ट्रेन की आवाज़ से नींद खुल जाती है मेरी
पता चल जाता है मुझे
डेढ बज रहे होंगे
समय हो चला है शहीद एक्सप्रेस का

फिर भागते लोगों के मंजर तैरने लगते हैं 
आँखों में 
और चीखें ही चीखें सुनाई देती हैं कानों में 
‘वाहे गुरु सब ठीक करेंगे’
‘बस सरहद पास ही है’
’अमृतसर पहुँच जायें किसी तरह’

मैं छत पर निकल आता हूँ
आकाश की ओर देखता हूँ
नि:स्तब्ध रात्रि में थोडी देर टहलता हूँ 
चाँद से पूछता हूँ
'ऐ चाँद, तू ही बता
ऐसा मंजर क्यों दिखलाई देता है मुझे अक्सर रातों में
ख्वाब आने से नींद मेरी खुलती है
या नींद खुलने से ऐसे मंजर तैरते हैं मेरी आँखों में
चाँद, बता तो सही’

उसने बताया,
'तू तो उस वक्त पैदा भी नहीं हुआ था
जब अफरा तफरी मची थी
एक लकीर खींची थी रेडक्लीफ ने 
दो मुल्क बने थे
मैं गवाह हूँ दोनों मुल्कों की कहानी का
देखा है मैंने हर हक़ीकत अपनी आँखों से

पर तू क्यों जागता है शहीद एक्सप्रेस के आने पर 
बँटवारे के दौर की किताबें पढ कर न सोया कर
हटा दो अपने सिरहाने से ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’,
‘तमस’, ‘रावी पार’ या ‘पिंजर’
नहीं तो ज़ेहन में घूमेंगे वही मंजर
उम्र जो हो चली है तुम्हारी'..!!


Sunday, August 3, 2014

कोसी फिर मचली



 
खबरें ख़बरदार कर रही हैं रह रह कर
न जाने क्या खाया था इस नदी ने पिछले सप्ताह
प्यास बुझती ही नहीं उसकी
गटक ली है कई क्यूसेक पानी
अब पेट फूल गया है
तोडकर बाँध कहीं उगलना चाहती है

अपनी हद से कहीं ऊपर बह रही है कई दिनों से
दहशतज़दा हैं लोगों के चेहरे
2008 के मंजर याद आते ही रूह काँप जाती है
कैसे बहा ले गई थी कोसी
सबकुछ रातों-रात ही

ख़ौफ में डूबे चेहरे इकट्ठे हैं उस पुल पर
इकट्ठे किए हैं लोगों ने अपने सौ बरस के सामान
इन सालों में
पर उन्हें पता नहीं
कि एक पल में ही डूबेगा उनका तिनका-तिनका आशियाँ
कभी भी आ सकता है सर तक पानी
फिर छूटेंगे हाथ
कई रिश्तों के...!!