Sunday, January 12, 2014

कोहरा

1. 
  
घना कोहरा है
बह रही हैं तेज बर्फीली हवाएँ भी
कल ही बर्फ गिरी थी बारिश में
लोग दुबके हुए हैं
अपने-अपने मकानों में

स्टेशन के बाहर ही है एक चाय की दुकान
सबेरे सवा छ: बजे
वक्त हो चला है ट्रेन का
मजदूर उतरेंगे ट्रेन से,
सबेरे की चाय की तलब
खींच लाएगी उन्हें
दुकान पर

यही वक्त है रामदीन के लिए बिजनेस पकडने का
‘मिस’ किया तो फिर फाका रहेगा सारा दिन
वक्त है लोगों के घर में रहने का, 
सोए रहने का ओढ कर गर्म रजाई  
या ब्लोअर की गर्म हवाओं में
सर्दी है बाहर अभी
शीत लहर है

पर फटी गंजी में है रामदीन
चूल्हे में कोयला डाल
पंखे से हवा कर रहा है आँच को
कि जल्दी लहक जाए चूल्हा
और बुझ जाए जठर की आग उसकी आज के दिन
सिग्नल हो चुका है ट्रेन का..! 

2.

लिपटा सोया है शहर
सफेद दुधिया चादर में कुहासे की
सामने का घर भी नहीं दीखता
सडकें, पेड, मकान और बादल सब मिल कर हो गये हैं एक
कि अल्लसुबह पेपर वाला देता अख़बार फेंक
बालकनी में
लहरा के अपने हाथ एक साइकिल पर सवार होकर
गुजरते कॉलोनी की हर गलियों से
आगाह करता, ठंढ बहुत है
ख़बरें छपी हैं मौत की
शीत लहर से लोगों की... 

3


घने कोहरे के बीच
स्टेशन पर बैठे इक्के-दुक्के सिकुडे लोग  
चरखी बन पेट में पैर और मुँह घुसाए चन्द कुत्ते
कल ही बर्फ गिरी थी बारिश में
लोग दुबके हुए हैं
अपने-अपने मकानों में
ठंढ से बेखबर
खेल रहे हैं बच्चे
पुआल की ढेर पर
मुँह से भाप निकालते और कहते
देखो मैंने बढा दिया है कोहरा आसमान में.... 




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