मैं
हूँ तो रोशनी है इस जग में
मैं
हूँ तो जिन्दगी है पग-पग में
उर में
धधकती हुई ज्वाला
कर में
लिए अमृत प्याला
नीलकण्ठ
की तरह विषपान कर
प्राणियों
में जीवनदान कर
फूल
खिलते हैं मुझे ही देखकर
कैद
से फिर छूटते भँवरे के पर
हर तरफ
गूँजे पक्षियों के मधुर स्वर
खेत
को भागे कृषक और जानवर
बीज
बोए बाग होते हैं हरे
रंग बादलों में मैंने ही भरे
अब्र
बनते हैं मुझसे ही घने
सब काम
पर जाते भले हों अनमने
है वही
इंसान अनुभव का धनी
जिसके
तंबई तन पसीनों में सने
No comments:
Post a Comment