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सफर में कडी धूप का बहाना छोडो
जो चल सको तो चलो मुँह न मोडोç
चलोगे साथ तो रास्ता खुद-ब-खुद कट जाएगा
धूप से हिफाजत का भी कोई वास्ता बन जाएगा
कहीं पेडों के साए मिल ही जायेंगे तो कहीं बादल
कहीं ताल-तलैया भी मिलेंगे तो कहीं झील में
कमल
कुछ न होगा तो रहेगी मेरी पलकों की छाँव
फिर न चुभेगी ये कडी धूप न दुखेगा पाँव
मेरे माथे पर तेरे आँचल का साया होगा
तेरे माथे पर मेरी बाँहों का घेरा होगा
कितना आसान फिर यह रास्ता हो जाएगा
हमसफर हमदर्द बन आँखों में बस जाएगा
मुद्दतों बाद फिर आँखों में नमी आएगी
धूप भी थक-हार कर शाम को ढल जाएगी
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