आँकडे
झूठ नहीं बोलते
आँकडे
बताते हैं कि लोगों की
आर्थिक
स्थिति में हो रहा है सुधार
इसलिए
आँकडों से खुश है सरकार
आँकडे
सजे होते हैं पावर-प्वाइंट प्रेजेंटेशन में
दिखाए
जाते हैं मीटिंग में
वातानुकूलित
सभागारों में
छपते
हैं अखबारों में
जिसे
पढते हैं नेता
अध्यापक
और पूरी जनता
जिसे
रटते हैं शोधार्थी
लिखते
हैं परीक्षा में विद्यार्थी
इसलिए
वे झूठ नहीं लगतेç
सत्य प्रतीत होते
मैंने
भी कल ही अखबारों में पढा
कारों
की बिक्री के सम्बन्ध में इक आँकडा
औरंगाबाद
में कारों की बिक्री में सर्वाधिक इजाफा हुआ
एक
ही मास में एक कार डीलर को अच्छा मुनाफा हुआ
आंकडे
थे कि कितने लोगों ने खरीदी गाडियाँ बडी
किसने
खरीदी मर्सीडीज और किसके दरवाजे बीएमडब्ल्यू खडी
व्यापारियों
ने एक मुश्त 65 करोड की कुल 150 मर्सीडीज खरीदीं
पर नहीं दिखी किसी को उसी कस्बे
के किसानों की नाउम्मीदी
हाँ..मंगरू
ही उसका नाम था
कर्ज
में डूबा एक किसान था
कल
ही तो गया था वह
बैंक
की इक शाखा में
दिन
भर दरवाजे पर खडा रहा
और
रात में ही चल बसा
चाहिए
थे उसे कुछ रूपए महाजन को देने के लिए
और
कुछ उस बनिए की पिछली उधारी के लिए
बनिए
ने आगे का राशन देना रोका था
मंगरू
परिवार-संग कई दिनों से भूखा था
रूपए
मिलते तो लेता थोडा आटा और दाल
कुछ
दिनों के लिए सही, शायद सुधरता उसका हाल
पर
रोटी उसे नसीब न थी
और
न ही उसकी दाल गली
कर्ज
के बोझ से बेहतर
मौत
ही अच्छी लगी
मर
गया वह मन में ही लिए इक लालसा
उसका
मरना था लोगों की नजर में हादसा
इसलिए
उसकी गरीबी का नहीं कुछ जिक्र है
अखबारों
को भी नहीं ऐसे लोगों की फिक्र है
न
वह आंकडों में शामिल हुआ
न
ही उसे कुछ हासिल हुआ
न
वह छपा अखबारों में
न
ही चर्चा हुई सभागारों में
आंकडे
कहते हैं कि हम प्रगति कर रहे
इसलिए
यह झूठ है कि किसान मर रहे
सच
है कि आँकडे होते हैं सच के करीब
मंगरू
अगर मर गया तो यह है उसका नसीब
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