Wednesday, September 9, 2015

वर्तमान की खोज





मैं वर्तमान में जीना चाहता हूँ
प्रतिक्षण बीतते लमहों
के बीच

इस वर्तमान को ढूँढा है मैंने कई जगहों पर
बहती नदी में
पर हर प्रवाह बीतती दिखी है मुझे
मैं दो प्रवाहों के बीच उसे पकड़ना चाहता हूँ

चढ़ते सूरज में
पर चढ़ते सूरज के साथ मिली है बढ़ती गर्मी मुझे
मैं प्रतिक्षण बढ़ते तापों के बीच ठहरना चाहता हूँ

बादलों में
पर बदलता मिला है रंग बादलों का प्रतिपल
मैं बदलते रंगों के बीच का रंग छूना चाहता हूँ

झरनों के गिरते पानी में
पर शोर मचाते बहते पानी में कोलाहल मिला है मुझे
मैं गिरते पानी की खामोशी महसूस करना चाहता हूँ

हवाओं में, फूलों की खुशबू में
पर हवाओं की अलग-अलग गंध मिली है मुझे
मैं हवाओं में खुशबूओं के घुलने का पल देखना चाहता हूँ

लेखों में, शब्दों और हर्फों में भी ढूँढा है उसे
पर पल शब्द के दोनों अक्षरों के बीच एक लम्बी दूरी मिली मुझे
इस दूरी को मैं पाटना चाहता हूँ

अक्षरों के बीच की दूरी का अहसास डाल देता है मुझे
भूत और भविष्य की उलझन में
पल के के आने के बाद जुड़ना का
बना देना को बीता हुआ और को आने वाला
भूत, भविष्यत
मैं इन दो अक्षरों के बीच की जगह में जीना चाहता हूँ

मैंने पल की तरह तुम में भी ढूँढा है उसे
पर तुम का तू बीता हुआ मिला मुझे
मैं तुम और मैं के बीच में साँस लेना चाहता हूँ
जहाँ ना तुम तुम रहो
ना मैं मैं

मुझे वर्तमान का पता दे दो
कि जी सकूँ उसके साथ
मुक्त
नि:शब्द
निर्द्वंद्व...!!


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