Sunday, October 25, 2015

सनराइज : अज़ीम खाँ की कब्रगाह से


एक शख़्स का नाम लिखा है
पत्थर की स्लैब पर
कोई अज़ीम खान थे
जिनकी कब्रगाह है ऊपर पहाडियों पर
जहाँ से उगते सूरज देखने कभी-कभार आते हैं लोग

पीछे ही खडा है आठ सौ साल पुराना कुतुबमीनार
जिसके सैंडस्टोन के पत्थर दिख रहे हैं और भी सुनहले
सबेरे की रोशनी में

पूरी दिल्ली अलसाई हुए नज़र आ रही है
धीरे-धीरे आँखें मलते जाग रही हैं महरौली की सडकें

जिस जगह पर अभी खडा हूँ मैं
सामने ही सोए पडे हैं कब्र में अज़ीम खान
बगल में ही दूसरी कब्र में लेटी हैं शायद उनकी माशूका
पर उनका नाम कहीं नहीं लिखा

उनकी कब्रों के ऊपर के स्लैब गायब हो चुके हैं
ये पत्थर अपनी हिफाजत नहीं कर पाए
अज़ीम खाँ के नाम की तरह
पुरातत्व वालों को भी कोई विशेष जानकारी नहीं
सिवाय इसके कि इतिहास के गर्त में दबी
उनकी कब्र चार सौ पचास साल पुरानी है

मैं बादलों की ओट से झाँकते
करोडों साल पुराने सूरज को देखता हूँ
तवारीख़ के पन्नों में क़ैद
हज़ारों शख़्सियतों के नामों और उनके कारनामों का गवाह यह सूरज
चमक रहा है सृष्टि के आरम्भ से और
चमकता रहेगा
मेरे गुमनाम हो जाने के बाद भी...!! 

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