Saturday, May 2, 2015

पछतावा

(भूकम्प के बाद...)
ज़रा सी करवट ही तो बदलनी चाही थी मैंने
टूट रहा था बदन मेरा
एक ही करवट सोए हुए बरसों से
सोचा ज़रा अँगडाई ले लूँ
के थोडी साँस मिले

गर मालूम होता
साँस लेना भी खता है मेरी
और इलजाम लगेगा मेरे सर
छ हजार बच्चों को लीलने का
साँस रोके पडी रहती
एक ही करवट में
दम साधे युगों तक 
दोषमुक्त...पापरहित...!!

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