2.
मर तो उसी दिन गई थी मैं
जब एक बहशी ने तार-तार की
थी इज्जत मेरी
और रात भर पडी थी मैं
नग्न, अचेत
अस्पताल के बेसमेंट में
उसके बाद न जाने कितनी बार
मरना पडा मुझे
अदालत की चारदीवारी में
बहस-मुबाहिसों में
जुलूस-हडतालों में
टीवी. और अख़बारों की
सुर्ख़ियों में
क्या यह सोच मौत से कम है
कि
मैंने काटी उम्र क़ैद
और उस दरिन्दे ने महज सात
साल....!! (अरुणा शानबाग की मृत्यु पर मेरी श्रद्धांजलि)
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